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रेल चली भाई, रेल चली। छुक छुक करती रेल चली। पटरी पटरी रेल चली। सीटी देती रेल चली। नहीं पसिंजर धीमी सी. आज हमारी मेल चली। रेल चली भाई रेल चली। कविता 14 हक्का बक्का : बच्चों के लिए 15 हिन्दी कविता Hindi poem for children first published by National Book Trust
काले काले बादल चले चाल तूफानी। चम चम चमकी बिजली। झम झम बरसा पानी। कविता 12 हक्का बक्का : बच्चों के लिए 15 हिन्दी कविता Hindi poem for children first published by National Book Trust
उछल पुछल कर जाती गेंद। अच्छी दौड़ लगाती गेंद। हमको खूब भगाती गेंद। यहीं कहीं छिप जाती गेंद। सब को खूब थकाती गेंद। कविता 11 हक्का बक्का : बच्चों के लिए 15 हिन्दी कविता Hindi poem for children first published by National Book Trust
खा से रसगुल्ला हमने किया कुल्ला पानी में उठा बुल्ला देख रहे मुल्ला इल्ली उल्ला बच्चों के लिए हिन्दी कविताएँ Hindi poem for children
श्याम बनेगा शेरू अपना गीत बनेगा बन्दर शिल्पा बिल्ली दूध पीएगी बैठी घर के अन्दर बबलू भौं भौं करता पल पल धूम मचाएगा। मोटू अपना हाथी बनकर झूमे सूंड हिलाएगा होगी फिर इन सबकी मस्ती गाती होगी बस्ती खुश होगा हर एक जानवर खुशियां कितनी सस्ती हा हा ही ही मैं भी मैं भी लगा मुखौटा गाऊं तुम हाथी तुम शेर बने तो मैं भालू बन जाऊं आहा कितने हम जंगल के प्यारे प्यारे वासी...
चिड़ियाघर भई, चिड़ियाघर इसके अंदर है बंदर। पानी वाला बड़ा मगर। बारहसिंघे का ये घर। चिड़ियाघर भई, चिड़ियाघर। कविता 15 हक्का बक्का : बच्चों के लिए 15 हिन्दी कविता Hindi poem for children first published by National Book Trust
आओ बच्चों रेल दिखायें छुक छुक करती रेल चलायें सीटी देकर सीट पे बैठो एक दूजे की पीठ पे बैठो आगे पीछे, पीछे आगे लाइन से लेकिन कोई न भागे सारे सीधी लाइन में चलना आंखे दोनों नीची रखना बंद आंखों से देखा जाए आंख खुली तो कुछ न पाए आओ बच्चों रेल चलायें सुनो रे बच्चों, टिकट कटाओ तुम लोग नहीं आओगे तो रेलगाड़ी छूट जायेगी आओ सब लाइन से खड़े हो जाओ मुन्नी तुम हो इंजन...
किताबे करती हैं बातें बीते ज़मानों की दुनियां की इंसानों की आज की कल की एक एक पल की खुशियों की ग़मों की फूलों की बमों की जीत की हार की प्यार की मार की क्या तुम नहीं सुनोगे इन किताबों की बातें किताबें कुछ कहना चाहती हैं तुम्हारे पास रहना चाहती है किताबों में चिड़ियां चहचहाती हैं किताबों में खेतियां लहलहाती हैं किताबों में झरने गुनगुनाते हैं परियों के किस्से सुनाते हैं किताबों में राकेट का राज़ है...
मोर बोला, चंपा, चंपा, तू अपने चंपा को कपड़े क्यों नहीं पहनाती तू भी अजीब है पोलीएस्टर और नायलोन डेकोन और टेरीकोट, मुझे समझाती है तूने शायद मेरा रूप नहीं देखा, अरे हां, तूने अपना रूप देखा ही कहां है ड्रेस के नीचे अपना सूंदर पेट कभी देखा है अपने मोजों के भीतर का पैर कभी देखा है, नहीं, चंपा नहीं उन कपड़ों में सांस घुटती है, उन कपड़ों में काया सड़ती है, उन कपड़ों से बू रिसती है।...
नाव चली नाव चली नानी की नाव चली नीना की नानी की नाव चली लम्बे सफर पे सामान घर से निकाले गए नानी के घर से निकाले गए और नानी की नाव में डाले गए क्या क्या डाले गए एक छड़ी, एक घड़ी एक झाड़ू, एक लाड़ू एक सन्दूक, एक बन्दूक एक सलवार, एक तलवार एक घोड़े की जीन एक ढोलक एक बीन एक घोड़े की नाल एक घीमर का जाल एक लहसून, एक आलू...
Source: https://www.pitara.com/categories/hindi-poems/
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