मोर बोला,
चंपा, चंपा,
तू अपने चंपा को कपड़े
क्यों नहीं पहनाती
तू भी अजीब है
पोलीएस्टर और नायलोन
डेकोन और टेरीकोट,
मुझे समझाती है
तूने शायद मेरा रूप नहीं देखा,
अरे हां,
तूने अपना रूप देखा ही कहां है
ड्रेस के नीचे अपना सूंदर पेट
कभी देखा है
अपने मोजों के भीतर का पैर
कभी देखा है,
नहीं, चंपा नहीं
उन कपड़ों में सांस घुटती है,
उन कपड़ों में काया सड़ती है,
उन कपड़ों से बू रिसती है।
और फिर,
मेरे नाच का क्या होगा
मेरे ठुमके का क्या होगा
मेरे रंग रूप का क्या होगा
मेरे कुहुक का क्या होगा
मेरे ताज़गी का क्या होगा
हार मानकर चंपा हाथी के पास गई
हाथी दादा, हाथी दादा,
तुम नंगे क्यों घूम रहे हो
चलो, जंगल की बात छोड़ो
लेकिन… तुम तो बाजार
और मंदिर में
राजा की सवारी में भी,
वैसे के वैसे
तुम तो दिखते हो
जैसे मिट्टी का ढेला
तुम किसी से शरमाते नहीं
तुम्हें कोई देख ले तो
एक बात पूछूं
तुम अपटूडेट क्यों नहीं लगते
तुम सफारी सूट टाई तो पहनो
बिना जूते मोजे कैसे बाहर निकला जाए
कैसे हैं मम्मी पापा तुम्हारे
जो तुम्हें कभी नहीं डांटते
हाथी दादा, तुम बुरा न मानो
प्यारे लगते हो तुम मुझको।
तभी तो कहती हूं…
तभी तो कहती हूं…
चंपा बिटिया तू जानती है
इस ढेले को सभी प्यार करते हैं
भारत की धरती मां,
सूरज और चंदा मामा,
गंगा मां और कावेरी मां झाड़ी
और जंगल और सब जीव जंतू।
सभी गले लगाते मूझको,
फिर कपड़ों की ज़रूरतएक बात कहूं तुमसे, सुन
कल टी वी में मैंने गांधीबापू को देखा…
अधखुला शरीर
बिन सिये एक ही कपड़े से ढका,
वे खुद बनाते
अपना कपड़ा
पागल हुआ भारत देश सारा
कताई करने लगे सभी
तुम्हारे मम्मी पापा ने भी
विदेशी कपड़ों की होली जलाई
उन दिनों
इंग्लैंड के राजा हम पर राज करते थे
उन्होंने गांधीबापू को बुला भेजा था…
उन्होंने कहा,
कपड़े बदलकर आओ।
गांधीबापू ने कहा,
जैसा हूं वैसा ही आऊंगा।
राजा को उनकी बात माननी पड़ी
और वे मिले वैसे ही।
गांधीबापू की बातें सोचती
लौटी चंपा घर को…
रास्ते में दो फूल मिले,
साथ लिये दोनों को।
घर आई. गई अपने कमरे में।
दर्पण के सामने हुई खड़ी।
उतार डाले कपड़े सभी
जूते, मोजे, बक्कल भी
लहरिया का एक टुकड़ा
लिया शरीर पर लपेट।
बालों में दो फूल लगाये।
हुई दंग देख, खुद ही खुद को।
अरे मैं तो सुन्दर दिखती हूं।
मेरे पैर और मेरे हाथ,
मेरी गर्दन, मेरे कंधे, सब कुछ।
इतने में मां आ पहुंची।
चंपा बिटिया, क्या हो रहा है
मां, गांधीबापू की तरह
एक कपड़ा लपेटा है।
हाथीदादा ने मुझे
गांधीबापू की बात बताई।
मां, मैं कैसी दिख रही हूं
तुम्हें गांधीबापू की बात याद है
मां ने चंपा को चूम लिया।

बच्चों के लिए हिन्दी कविताएँ
Hindi poem for children

463 words | 17 minutes
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Filed under: hindi poems
Tags: #hindi poems for kids, #बच्चों के लिए हिन्दी कविताएँ

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