एक पेड़ पर नदी किनारे,
बन्दर मामा रहते थे।
वर्षा गर्मी सर्दी
उसी पेड़ पर रहते थे।
भूख मिटाने को बगिया से
चुन चुन फल खाया करते।
य़ा छीन झपट बच्चों से
ये चीजें ले आया करते।
खा पी सेठ हुए मामा जी,
झूम झूम इठलाते थे।
और नदी के मगर मौसिया
देख देख ललचाते थे।
सोचा करते अगर कहीं मैं
मोटूमल को पा जाऊं।
बैठ किनारे रेत के ऊपर
खूब मजे से खाऊं।
एक नई तरकीब अचानक,
थी उसके मन में आई।
बोले क्यों बैठै रहते हो,
ऊपर ही मेरे भाई।
नदी पर है एक बगीचा,
आमों का प्यारा।
और वहीं पर कभी नहीं,
रहता है कोई रखवाला।
इतना सुनते ही बन्दर के,
मुँह में पानी भर आया।
मगरमच्छ ने छट से,
अपने ऊपर उसे बिठलाया।
बीच नदी में मगरमच्छ,
बोले अब आगे न जाऊंगा।
आज कलेजा यहीं बैठकर
मैं तो तेरा खाऊंगा।
इतना सुनते ही बन्दर की
बुद्धि बहुत चकराई।
बोला वहीं पर क्यों,
नहीं बतलाया भाई।
लगता मुझको बोझ बहुत,
उसको डाली पर रख आया।
मगरमच्छ ने सोचा बात सही
जो इसने बात बतलाया।
मगरमच्छ ने झट से उसे,
वापस जा लौटाया।
बन्दर ने झट से पेड़ पर चढ़कर,
अपना अंगुठा दिखलाया।
बच्चों के लिए हिन्दी कविताएँ
Hindi poem for children first published by National Book Trust
210 words |
7 minutes
Readability:
Based on Flesch–Kincaid readability scores
Filed under: hindi poems
Tags: #hindi poems for kids, #बच्चों के लिए हिन्दी कविताएँ
You may also be interested in these:
अमरूद बन गये