बबलू बहुत देर से अपनी बहन से झगड़ रहा था। बहन उससे बड़ी थी और काफी देर से सब्र कर रही थी। आखिर उसे गुस्सा आ गया। बोली चुप करता है या नहीं, वरना मार मार कर भरता बना दूंगी।
बबलू सिर्फ झगड़ालू ही नहीं खाने का भी बड़ा शौकीन था। उसने भरता सुनते ही बहन की जुबान पकड़ ली, अरे वाह! भरता तो मुझे बेहद पसंद है। बैंगन का भरता गरमा गरम पराठे के साथ। बहन ने समझ लिया कि अपने पाजी भाई से जीतने वाली वह नहीं। उसने ही सुलह करने की पहल की। पेटु राम, जब देखो तब खाने की सूझती है। अच्छा यह बताओ भरता खाना है बैंगन का। बबलू इतनी आसानी से समझौता करने वाला जीव नहीं था। उसने कहा, मुझे बैंगन का भरता थोड़ी खाना है मुझे तो बघार के बैंगन ज्यादा पसन्द है।
इसी बीच बच्चों की मां कमरे में आ पहुंची। पहले तो वह झगड़ा शान्त कराने के इरादे से निकली थी पर बघार के बैंगनों का जिक्र सुनते ही वह भी पहेलियां बुझाने लगी… बघार के बैंगन सिर्फ पसंद ही हैं या यह भी पता है कि बनते कहां है। इससे पहले कि बड़ी बहन बाजी मार ले जाए बबलू ने अंताक्षरी में हिस्सा लेने वाले प्रतियोगी की तरह उतावली से उत्तर दिया। हैदराबाद में, हैदराबाद में… बघार के बैंगन वहीं बनते हैं और इनमें इमली की खटास होती है और…। बहन ने नाक भौंह सिकोड़ते हुए भाई को चिढ़ाना जारी रखा। मुझे तो बैंगन बिल्कूल नहीं भाते ना भरता, ना बघार वाले। तुझे याद नहीं अकबर बीरबल वाली कहानी में शहंशाह अकबर ने बैंगन को क्या नाम दिया था। बैंगन, जिसमें कोई भी गुण नहीं होता।
बबलू ने नहले पर दहला जड़ने वाले अंदाज में कहा, और यह क्यों भूल रही हो शहंशाह अकबर ने भी बैंगन के ज़ायके से खुश होकर बीरबल से यह कहा था कि देखो यह सब्जी सब सब्जियों की शाह है तभी तो इसके सिर पर ताज है। बहन अब तक टक्कर लेने के लिए तैयार हो चुकी थी बोली… बीरबल का क्या, बिल्कुल थाली के बैंगन थे। जिधर थाली झुकाई उधर लुढ़क चले।
बच्चों की बातों में मां को भी मजा आने लगा था। उनसे बिना टोके नहीं रहा गया… लड़की अभी भी अपनी ज़िद पर डटी रही… जो भी कहो मुझे तो भरता पसंद नहीं और न ही बघार के बैंगन। बबलू इतनी आसानी से पीझा छोड़ने वाला नहीं था… और उस दिन पिकनिक में भरवां अचारी बैंगन लपक लपक कर कौन खा रहा था।
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