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चित्रकार सुनसान जगह में बना रहा था चित्र। इतने ही में वहां आ गया यम राजा का मित्र।। उसे देखकर चित्रकार के तुरंत उड़ गये होश। नदी पहाड़ पेड़ फिर उसको कुछ हिम्मत आई देख उसे चुपचाप। बोला सुन्दर चित्र बना दूं बैठ जाइये आप।। उकरू मुकरू बैठ गया वह सारे अन्ग बटोर। बड़े ध्यान से लगा देखने चित्रकार की ओर।। चित्रकार ने कहा हो गया आगे का तैयार। अंब मुंह आप उधर तो करिये जंगल के सरदार।।...
यह कैसा है घोटाला कि चाबी मे है ताला कमरे के अंदर घर है और गाय में है गोशाला। दातों के अंदर मुंह है और सब्जी में है थाली रूई के अंदर तकिया और चाय के अंदर प्याली। टोपी के ऊपर सर है। और कार के ऊपर रस्ता ऐनक पे लगी हैं आंखें कापी किताब में बस्ता। सर के बल सभी खड़े हैं पैरों से सूंध रहे हैं घुटनों में भूख लगी है और टखने ऊंघ रहे हैं।...
बबलू बहुत देर से अपनी बहन से झगड़ रहा था। बहन उससे बड़ी थी और काफी देर से सब्र कर रही थी। आखिर उसे गुस्सा आ गया। बोली चुप करता है या नहीं, वरना मार मार कर भरता बना दूंगी। बबलू सिर्फ झगड़ालू ही नहीं खाने का भी बड़ा शौकीन था। उसने भरता सुनते ही बहन की जुबान पकड़ ली, अरे वाह! भरता तो मुझे बेहद पसंद है। बैंगन का भरता गरमा गरम पराठे के साथ। बहन ने समझ लिया कि अपने पाजी भाई से जीतने वाली वह नहीं। उसने ही सुलह करने की पहल की। पेटु राम, जब देखो तब खाने की सूझती है। अच्छा यह बताओ भरता खाना है बैंगन का। बबलू इतनी आसानी से समझौता करने वाला जीव नहीं था। उसने कहा, मुझे बैंगन का भरता थोड़ी खाना है मुझे तो बघार के बैंगन ज्यादा पसन्द है।...
इब्न बतूता पहन के जूता निकल पड़े तूफान में थोड़ी हवा नाक में घुस गई घुस गई थोड़ी कान में। कभी नाक को कभी कान को मलते इब्न बतूता इसी बीच में निकल पड़ा उनके पैरों का जूता। उड़ते उड़ते जूता उनका जा पहुंचा जापान में इब्न बतूता खड़े रह गये मोची की दुकान में बतूता का जूता बच्चों के लिए हिन्दी कविताएँ Hindi poem for children first published by National Book Trust
स्वामी और उसके दोस्त का प्रथम अंश सोमवार की सुबह थी। स्वामीनाथन की आंखे खोलने की इच्छा नहीं हो रही थी। सोमवार उसे कैलेंडर का सबसे मनहूस दिन लगता था। शनिवार और रविवार की मज़ेदार आजादी के बाद सोमवार को काम और अनुशासन के मूड़ में आना बहुत मुश्किल होता था। स्कूल के विचार से ही उसे झुरझुरी आ गयी वह पीली मनहूस बिल्डिंग जलती आंखों वाला कक्षा अध्यापक वेदनायकम और पतली लंबी छड़ी हाथ में लिए हैडमास्टर।...
कहानी का प्रथम अंश सब्जी बनाने से पहले झींगी के दो टुकड़े कर छुरी की नोक से उसका जरा सा गुदा निकाल बिपुल की मां ने मुंह में डालकर चख लिया। कहीं झींगी कड़वी तो नहीं। झींगी और तोरी की कुछ प्रजातियां इतनी कड़वी होती हैं कि अगर सब्जी में पड़ जायें तो पूरी सब्जी कड़वी हो जाती है। इस कारण बिपुल की मां झींगी या तोरी की सब्जी बनाने के पहले उसे जरूर चख लेती है।...
धूम धड़क्का धूम धड़क्का सचिन का चौका सचिन का छक्का रह गए सारे हक्का बक्का चौका छक्का धूम धड़क्का कविता 1 हक्का बक्का : बच्चों के लिए 15 हिन्दी कविता Hindi poem for children first published by National Book Trust
सर्दी आई, सर्दी आई ठंड की पहने वर्दी आई। सबने लादे ढेर से कपड़े चाहे दुबले, चाहे तगड़े। नाक सभी की लाल हो गई सुकड़ी सबकी चाल हो गई। टिठुर रहे हैं कांप रहे हैं दौड़ रहे हैं, हांप रहे हैं। सारे मौसम अच्छे [Illustrations by Nilima Sheikh] धूप में दौड़ें तो भी सर्दी छाओं में बैठें तो भी सर्दी। बिस्तर के अंदर भी सर्दी बिस्तर के बाहर भी सर्दी। बाहर सर्दी घर में सर्दी...
घो घो घो घोड़ा लकड़ी का घोड़ा चाबुक न कोड़ा जब इसको मोड़ा भागा ये घोड़ा भागा ये घोड़ा लकड़ी का घोड़ा घो घो घो घोड़ा। कविता 5 हक्का बक्का : बच्चों के लिए 15 हिन्दी कविता Hindi poem for children first published by National Book Trust
कितनी बड़ी दिखती होंगी मक्खी को चीजें छोटी सागर सा प्याला भर जल पर्वत सी एक कौर रोटी। खिला फूल गुलदस्ते जैसा कांटा भारी भाला सा तालों का सूराख उसे होगा बैरगिया नालासा। हरे भरे मैदानों की तरह होगा इक पीपल का पात पेड़ों के समूहसा होगा बचा खुचा थाली का भात। ओस बूंद दरपनसी होगी सरसो होगी बेल समान सांस मनुज की आंधीसी करती होगी उसको हैरान बच्चों के लिए हिन्दी कविताएँ Hindi poem for children first published by National Book Trust
Source: https://www.pitara.com/fiction-for-kids/
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