432 items in this section. Displaying page 42 of 44
बोला मुर्गा कुकडूं कूं कुकडू कूं कुकडू कूं बड़े सबेरे जाग पड़ूं चलते चलते मैं अकड़ूं कुकड़ूं कूं कुकड़ूं कूं कविता 8 हक्का बक्का : बच्चों के लिए 15 हिन्दी कविता First published by National Book Trust
हरे पेड़ की डाली। जामुन काली काली। मीठा है, रसवाली। जामुन काली काली लाठी लेकर महंगू। करता है रखवाली। जामुन काली काली। हरे पेड़ की डाली। कविता 6 हक्का बक्का : बच्चों के लिए 15 हिन्दी कविता Hindi poem for children first published by National Book Trust
चिड़ियाघर भई, चिड़ियाघर इसके अंदर है बंदर। पानी वाला बड़ा मगर। बारहसिंघे का ये घर। चिड़ियाघर भई, चिड़ियाघर। कविता 15 हक्का बक्का : बच्चों के लिए 15 हिन्दी कविता Hindi poem for children first published by National Book Trust
उछल पुछल कर जाती गेंद। अच्छी दौड़ लगाती गेंद। हमको खूब भगाती गेंद। यहीं कहीं छिप जाती गेंद। सब को खूब थकाती गेंद। कविता 11 हक्का बक्का : बच्चों के लिए 15 हिन्दी कविता Hindi poem for children first published by National Book Trust
रेल चली भाई, रेल चली। छुक छुक करती रेल चली। पटरी पटरी रेल चली। सीटी देती रेल चली। नहीं पसिंजर धीमी सी. आज हमारी मेल चली। रेल चली भाई रेल चली। कविता 14 हक्का बक्का : बच्चों के लिए 15 हिन्दी कविता Hindi poem for children first published by National Book Trust
आओ बच्चों रेल दिखायें छुक छुक करती रेल चलायें सीटी देकर सीट पे बैठो एक दूजे की पीठ पे बैठो आगे पीछे, पीछे आगे लाइन से लेकिन कोई न भागे सारे सीधी लाइन में चलना आंखे दोनों नीची रखना बंद आंखों से देखा जाए आंख खुली तो कुछ न पाए आओ बच्चों रेल चलायें सुनो रे बच्चों, टिकट कटाओ तुम लोग नहीं आओगे तो रेलगाड़ी छूट जायेगी आओ सब लाइन से खड़े हो जाओ मुन्नी तुम हो इंजन...
खा से रसगुल्ला हमने किया कुल्ला पानी में उठा बुल्ला देख रहे मुल्ला इल्ली उल्ला बच्चों के लिए हिन्दी कविताएँ Hindi poem for children
यह है गुड़िया यह है गुड्डा यह है बु्ढ़िया यह है बुड्ढा। सोच रही हूं इक दिन गुड़िया हो जाएगी ऐसी बुढ़िया। हो जाएगा इक दिन बुड्ढ़ा मेरा प्यारा सा गुड्डा। गुड़िया बुढ़िया गुड्डा बुड्ढा। कविता 13 हक्का बक्का : बच्चों के लिए 15 हिन्दी कविता First published by National Book Trust
चूं चूं चूं चूं चूहा बोले म्याऊं म्याऊं बिल्ली ती ती कीरा बोले झीं झीं झीं झीं झिल्ली किट किट किट बिस्तुइया बोले किर किर किर गिलहैरी तुन तुन तुन इकतारा बोले पी पी पी पिपहैरी टन टन टन टन घंटी बोले ठन ठन ठन्न रूपैया बछड़ा देखे बां बां बोले तेरी प्यारी गइया ठनक ठनक कर तबला बोले डिम डिम डिम डिम डौंडी टेढ़ी मेढ़ी बातें बोले बाबाजी की लौंडी From Ayodhya Singh Upadhyaya ‘Hariaudh’....
मोर बोला, चंपा, चंपा, तू अपने चंपा को कपड़े क्यों नहीं पहनाती तू भी अजीब है पोलीएस्टर और नायलोन डेकोन और टेरीकोट, मुझे समझाती है तूने शायद मेरा रूप नहीं देखा, अरे हां, तूने अपना रूप देखा ही कहां है ड्रेस के नीचे अपना सूंदर पेट कभी देखा है अपने मोजों के भीतर का पैर कभी देखा है, नहीं, चंपा नहीं उन कपड़ों में सांस घुटती है, उन कपड़ों में काया सड़ती है, उन कपड़ों से बू रिसती है।...
Source: https://www.pitara.com/fiction-for-kids/
Pitara literally means ‘a chest full of surprises’. For 25 years (this website was started in 1998) we have been publishing original multi-cultural, multi-lingual and inclusive content to help kids explore, discover, learn, play, enjoy... All our content is copyright protected. If you wish to use our content ask us — some of the world's leading publishers regularly license our content.