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देहरादून लौटते हुए काका ने ओमू को दस रूपये थमाए। काका दफ्तर के किसी काम से ओमू के गांव आए थे और उसी के घर में उसके परिवार के साथ ठहरे हुए थे। उस दौरान ओमू ने उनकी खूब टहल की थी। उसने उन्हें गांव भर में खूब घुमाया फिराया था। उनके छोटे छोटे काम कर समय पर मदद की थी। काका को ओमू बहुत पसन्द था। उन्होंने ओमू के पिता से ओमू को अपने साथ देहरादून चलने की बात भी की थी। काका ने कहा था कि वे ओमू को देहरादून के किसी अच्छे विद्यालय में भर्ती करा देंगे और उसके बाद कालेज भी भेजेंगे। काका सम्पन्न थे और उनकी कोई औलाद भी नहीं थी।...
बबलू बहुत देर से अपनी बहन से झगड़ रहा था। बहन उससे बड़ी थी और काफी देर से सब्र कर रही थी। आखिर उसे गुस्सा आ गया। बोली चुप करता है या नहीं, वरना मार मार कर भरता बना दूंगी। बबलू सिर्फ झगड़ालू ही नहीं खाने का भी बड़ा शौकीन था। उसने भरता सुनते ही बहन की जुबान पकड़ ली, अरे वाह! भरता तो मुझे बेहद पसंद है। बैंगन का भरता गरमा गरम पराठे के साथ। बहन ने समझ लिया कि अपने पाजी भाई से जीतने वाली वह नहीं। उसने ही सुलह करने की पहल की। पेटु राम, जब देखो तब खाने की सूझती है। अच्छा यह बताओ भरता खाना है बैंगन का। बबलू इतनी आसानी से समझौता करने वाला जीव नहीं था। उसने कहा, मुझे बैंगन का भरता थोड़ी खाना है मुझे तो बघार के बैंगन ज्यादा पसन्द है।...
स्वामी और उसके दोस्त का प्रथम अंश सोमवार की सुबह थी। स्वामीनाथन की आंखे खोलने की इच्छा नहीं हो रही थी। सोमवार उसे कैलेंडर का सबसे मनहूस दिन लगता था। शनिवार और रविवार की मज़ेदार आजादी के बाद सोमवार को काम और अनुशासन के मूड़ में आना बहुत मुश्किल होता था। स्कूल के विचार से ही उसे झुरझुरी आ गयी वह पीली मनहूस बिल्डिंग जलती आंखों वाला कक्षा अध्यापक वेदनायकम और पतली लंबी छड़ी हाथ में लिए हैडमास्टर।...
कहानी का प्रथम अंश सब्जी बनाने से पहले झींगी के दो टुकड़े कर छुरी की नोक से उसका जरा सा गुदा निकाल बिपुल की मां ने मुंह में डालकर चख लिया। कहीं झींगी कड़वी तो नहीं। झींगी और तोरी की कुछ प्रजातियां इतनी कड़वी होती हैं कि अगर सब्जी में पड़ जायें तो पूरी सब्जी कड़वी हो जाती है। इस कारण बिपुल की मां झींगी या तोरी की सब्जी बनाने के पहले उसे जरूर चख लेती है।...
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